प्रिय नागरिक,
हमें नागरिकों की जान बचाने वाली, नागरिक-प्रामाणिक प्रक्रिया की तुरंत आवश्यकता है जिसका नाम पारदर्शी-शिकायत प्रस्ताव प्रणाली है.
सिर्फ तीन लाइन का यह कानून गवाह, अपराध की जानकारी देने वाले कार्यकर्ताओं (सचेतकों) की जान बचायेगा, भ्रष्टाचार, गरीबी, अशिक्षा, महंगाई, बेरोजगारी आदि समस्याओं को कुछ ही महीने में कम कर देगा और देश में सच्चे लोकतंत्र की स्थापना करेगा । (ये प्रक्रिया कैसे जान बचायेगा, आदि इसके लिए कृपया आगे पढ़ें)
अगर आप इस लाइन की मांग को प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री राजपत्र में छापे, ऐसा चाहते है तो अपने सांसद या विधायक को निम्नलिखित आदेश एस.एम.एस. या ट्विट्टर के द्वारा देवे और इस सरकारी-आदेश को तुरंत पारित करवाने के लिए कहें ---
"Kripya apne website, twitter aadi dwara shoshan kam karne wali prakriya - tinyurl.com/TeenLineKanoon ki maang karein aur rajptr mein chhapwayein. Varna apko aur apki party ko vote nahin karenge. Kripya smstoneta.com jaise public sms server banayein jismein logon ki SMS dwara raay unke voter ID no ke saath sabhi ko dikhe."
अपने सांसद/विधायक को एस.एम.एस. भेजने के अलावा, अपनी मांग का प्रमाण अपने वोटर आई.डी. के साथ, पहले से मौजूद पब्लिक एस.एम.एस. सर्वर पर दिखाएँ 2 एस.एम.एस. भेज कर.
यदि आप ये चाहते हैं कि नागरिक-मतदाता को ये विकल्प होना चाहिए कि यदि वो चाहे, तो वो किसी भी दिन, कलेक्टर आदि सरकारी दफ्तर जाकर अपनी अर्जी, 20 रुपये प्रति पन्ने के एफिडेविट के रूप में अपने वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री वेबसाईट पर स्कैन करवा सकेगा जिससे सभी उस एफिडेविट को बिना लॉग-इन शब्द-शब्द पढ़ सकें, और कोई अन्य नागरिक पहले से दर्ज एफिडेविट पर अपनी हाँ/ना दर्ज कर सके और उसे कभी भी बदल सके, तो 9112028108 को 0011 एस.एम.एस भेजें साइट पर रजिस्टर होने के बाद. अधिक जानकारी के लिए ये लिंक देखें यहाँ
और कृपया अन्य नागरिकों को भी विज्ञापन, पर्चों आदि द्वारा बताएं कि वे भी अपने विधायक / सांसद को इस प्रकार का एस.एम.एस भेजें.
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प्रिय सांसद/विधायक,
अगर आपको एस.एम.एस. के द्वारा यू.आर.एल. मिला है तो उसे वोटर का आदेश माना जाये जिसने यह मैसेज भेजा है (न कि जिसने ये लेख लिखा है). एस.एम.एस. भेजने वाला आपको निम्नलिखित कानून-ड्राफ्ट को अपने वेबसाईट, ट्विट्टर आदि द्वारा बढ़ावा करने और प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री आदि से मांग करने के लिए आदेश दे रहा है.
== प्रस्तावित प्रक्रिया-ड्राफ्ट जो राजपत्र में छपवाना है, उसका आरम्भ ===
1. जनता का जांचा जा सकने वाला मीडिया [जिला कलेक्टर, मुख्यमंत्री के लिए निर्देश] मुख्यमंत्री आदेश देते हैं कि यदि कोई भी नागरिक मतदाता, यदि खुद हाजिर होकर, 20 रुपये प्रति पेज एफिडेविट पर अपनी सूचना अधिकार का आवेदन अर्जी / भ्रष्टाचार के खिलाफ फरियाद / कोई प्रस्ताव या कोई अन्य एफिडेविट कलेक्टर दफ्तर (या अन्य मुख्यमंत्री द्वारा बताये गए दफ्तर) में देता है और मुख्यमंत्री की वेब-साईट पर रखने की मांग करता है, तो कलेक्टर (या उसका क्लर्क) उस नागरिक की मतदाता पहचान पत्र और पते के सबूत की जांच करेगा, एफिडेविट नंबर देकर एफिडेविट को पूरा स्कैन करके नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर (मतदाता पहचान पत्र संख्या) के साथ मुख्यमंत्री की वेबसाइट पर रखेगा , ताकि सभी बिना लॉग-इन किये एफिडेविट देख सकें .
2. दर्ज एफिडेविट पर नागरिक का वोटर आई.डी. समर्थन / विरोध [पटवारी (= तलाटी = लेखपाल) के लिए निर्देश] मुख्यमंत्री / गवर्नर पटवारी को आदेश देते हैं कि :
(2.1) कोई भी नागरिक मतदाता यदि धारा-1 द्वारा दी गई अर्जी या एफिडेविट पर आपनी हाँ या ना दर्ज कराने मतदाता कार्ड लेकर आये, 3 रुपये का शुल्क (फीस) लेकर, तो पटवारी नागरिक का मतदाता कार्ड संख्या, नाम, उसकी हाँ या ना को कंप्यूटर में दर्ज करके रसीद दे देगा. नागरिक की हाँ या ना उनके मतदाता पहचान पत्र संख्या के साथ मुख्यमंत्री की वेब-साईट पर आएगी. गरीबी रेखा के नीचे के नागरिकों के लिए फीस 1 रूपये होगी.
(2.2) सुरक्षा धारा (जिसके कारण आम-नागरिक ये सुनिश्चित कर सकते हैं कि ये प्रक्रिया पैसों से, गुंडों से या मीडिया द्वारा प्रभावित नहीं की जा सकती) नागरिक पटवारी के दफ्तर जाकर किसी भी दिन अपनी हाँ या ना, बिना किसी शुल्क (फीस) के रद्द कर सकता है और तीन रुपये देकर बदल सकता है.
(2.3) मुख्यमंत्री एक ऐसा सिस्टम बना सकता है, जिससे मतदाता अपनी हाँ या ना, 10 पैसे देकर एस.एम.एस. द्वारा दर्ज कर सके और एक एस.एम.एस फीडबैक सिस्टम बना सकता है.
(2.4) मुख्यमंत्री एक ऐसा सिस्टम बना सकता है जिसके द्वारा नागरिक अपनी हाँ या ना ए.टी.एम. कार्ड द्वारा और 50 पैसे देकर दर्ज करवा सकता है.
(2.5) कलेक्टर एक ऐसा सिस्टम भी बना सकता है, जिससे मतदाता का फोटो, अंगुली के छाप को रसीद पर डाला जा सके. और मतदाता के लिए फीडबैक (पुष्टि) एस.एम.एस. सिस्टम बना सकता है.
3. राय-संख्या बाध्य नहीं - यह हाँ या ना अधिकारी, मंत्री, जज, सांसद, विधायक, अदि पर अनिवार्य (जरूरी) नहीं होगी । यदि राज्य के 51% नागरिक मतदाता, कोई अर्जी, फरियाद पर हाँ दर्ज करें, तो मुख्यमंत्री उस फरियाद, अर्जी पर ध्यान दे भी सकते हैं या ऐसा करना उनके लिए जरूरी नहीं है, या मुख्यमंत्री इस्तीफा दे सकते हैं । उनका निर्णय अंतिम होगा
==== प्रस्तावित प्रक्रिया ड्राफ्ट जो राजपत्र में छापना है उसकी समाप्ति ====
1. यदि नागरिक चाहे, तो अपनी फरियाद / शिकायत / प्रस्ताव 20 रूपये प्रति पेज देकर कलेक्टर की कचहरी जाकर अपने वोटर आई.डी. नंबर के साथ प्रधानमंत्री वेबसाइट पर स्कैन करवा सकेगा. इस शिकायत को बिना लॉग-इन किये सभी आम नागरिक देख सकेगें.
2. यदि नागरिक चाहे तो 3 रुपये का शुल्क देकर धारा 1 में दी गई फरियाद / शिकायत / प्रस्ताव पर अपनी हाँ/ना प्रधानमंत्री वेबसाइट पर दर्ज करवा सकेगा. और उस नागरिक की हाँ / ना पधानमंत्री की वेबसाइट पर नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ दिखाई देगी. यह हाँ-ना दर्ज कराने की कीमत 3 रूपये से घटकर 10 पैसे हो जायेगी, जब यह प्रकिया एस.एम.एस. पर आ जायेगी. नागरिक अपना मत किसी भी दिन रद्द कर सकता है या बदल सकता है इस कारण ये प्रक्रिया ना तो पैसों द्वारा खरीदी जा सकती है, ना ही गुंडों या मीडिया द्वारा प्रभावित की जा सकती है.
3. हाँ / ना पधानमंत्री पर अनिवार्य नहीं है.
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मान लीजिए, किसी क्षेत्र में कोई अपराध हुआ है और नागरिक उसकी एफ.आई.आर. लिखवाता है या गवाही/सबूत देता है और नागरिक को एफ.आई.आर. की कॉपी मिलती है तो उसे कोई भ्रष्ट पुलिस अफसर अपराधियों के साथ सांठ-गाँठ करके आसानी से दबा सकते हैं. क्योंकि नागरिक अपनी दर्ज एफ.आई.आर. या अर्जी जमा करने के बाद देख नहीं सकते.
और आज के सिस्टम में गवाहों को गलत तत्व आसानी से डरा-धमका सकते हैं ; यहाँ तक गवाहों को जान से भी मार दिया जाता है. क्योंकि गुंडों को मालूम है कि अधिक लोगों को तथ्य की जानकारी नहीं है और गवाह दबाने/मारने से सबूत समाप्त हो जायेंगे.
लेकिन यदि नागरिकों के पास ये नागरिक-प्रामाणिक विकल्प है कि वे अपनी बात, सबूत या राय अपनी वोटर आई.डी. नंबर के साथ सार्वजनिक रूप से दर्शा सकते हैं, तो पुलिस अफसर देखेगा कि सबूत को दबाया नहीं जा सकता है, अब तो लाखों-करोड़ों को प्रमाण प्राप्त हो गए हैं | और गुंडों को भी समझ में आएगा कि गवाह ने अपना बयान सार्वजनिक कर दिया है - इसीलिए अब गवाह को मारने से कोई लाभ नहीं है. इस प्रकार गवाह की भी जान बच जायेगी.
>भारतीय राज व्यवस्था में सबसे बड़ा दोष यह है कि नागरिकों के पास शासकों के सम्मुख अपनी स्पष्ट मांग संगठित रूप से रखने की कोई नागरिक-प्रामाणिक प्रक्रिया नहीं है.
उच्च वर्ग के लोग अपने संपर्क द्वारा अपनी कोई बात जनता के सामने रखना चाहे तो वे ऐसा मिडिया के माध्यम से आसानी से कर सकते हैं, किन्तु यदि जनता अपनी कोई मांग या सुझाव शासन के सम्मुख रखना चाहे तो उन्हें अनशन, धरने, विरोध प्रदर्शन, हस्ताक्षर अभियान, ज्ञापन, रास्ता जाम, नारेबाजी आदि असंगठित तरीकों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. किन्तु इन सब तरीकों से कोई 'नागरिक प्रमाणिक' प्रमाण पैदा नहीं होता, मतलब कोई भी नागरिक स्वयं जांच सके, ऐसा प्रमाण नहीं मिल पाता कि कितने नागरिक अमुक विषय के समर्थन या विरोध में हैं .
नागरिक-प्रामाणिक नहीं होने से इन प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता नहीं होती और नागरिक या अफसर कोई स्पष्ट निष्कर्ष पर नहीं आ पाते. इस प्रकार, ईमानदार अफसर नागरिक-मतदाताओं के अनुसार अपना कार्य नहीं कर पाते और बे-ईमान अफसर आसानी से ये कहकर फिसल जाते हैं कि `समर्थन हस्ताक्षर आदि प्रामाणिक नहीं हैं` या `हम इस मुद्दे को देखेंगे. अभी हम और बहुत जरुरी काम कर रहे हैं.`
pgportal.gov.in जैसी सरकारी साईट में नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ शिकायत दर्शाने का विकल्प भी नहीं है, जिससे दूसरे नागरिक ये पता नहीं लगा सकते कि शिकायत दर्ज करने वाला व्यक्ति असली हैं कि नकली. लेकिन टी.सी.पी. में नागरिक की राय पहचान पत्र संख्या के साथ प्रधानमंत्री वेबसाईट पर आएगी ; कोई भी नागरिक वोटर आई.डी. राय वाले डाटा का सैम्पल लेकर, राय देने वाले व्यक्तियों का पता निकालकर उनसे संपर्क करके स्वयं पता लगा सकता हैं कि डाटा सही है कि नहीं.
जिन लोगों के पास इन्टरनेट नहीं भी है, वे भी इस प्रक्रिया का उपयोग कर सकेंगे, कलक्टर दफ्तर या निश्चित सरकारी दफ्तर जाकर और अपनी अर्जी प्रधानमंत्री वेबसाईट पर स्कैन करवाकर. क्योंकि इस प्रक्रिया में कोई भी व्यक्ति कभी भी अपनी राय बदल सकता है, ये प्रक्रिया पैसों, गुंडों, मीडिया द्वारा या अन्य किसी भी प्रकार से प्रभावित नहीं कि जा सकेगी. प्रक्रिया नागरिक-प्रामाणिक होने से कोई भी नागिक स्वयं जांच सकता है कि सच क्या है, क्या नहीं.
इस प्रस्तावित प्रक्रिया के लागू होने से प्रस्तावों को दबाया नहीं जा सकता है और दूसरे जनहित के प्रक्रियाओं की आने की सम्भावना बढ़ जायेगी जिससे गरीबी और भ्रष्टाचार को कुछ ही महीनों में कम किया जा सकता है.
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