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समस्याओं का समाधान पाने के लिए, अपने जनसेवक के लिए निर्देश अपने वोटर नंबर के साथ सार्वजानिक दिखाएँ

1. यदि कोई मालिक अपने कर्मचारियों को कोई भी निर्देश नहीं देता, तो किसकी गलती है ? मालिक की गलती है या कर्मचारी की गलती ?

इसका उत्तर जाहिर है. यदि मालिक निर्देश नहीं देता और कर्मचारी अपने अनुसार कार्य करता है, तो फिर कर्मचारी को दोषी नहीं कह सकते. लेकिन, यदि मालिक ने उचित निर्देश दिए थे लेकिन कर्मचारी ने निर्देशों का सही से पालन नहीं किया, तो कर्मचारी को दोषी कहा जा सकता है.

⊗ इसी प्रकार, यदि किसी क्षेत्र के बहुमत नागरिक-मतदाताओं ने अपने सांसद, विधायक, पार्षद आदि जनसेवक के लिए, अपने वोटर नंबर के साथ, सार्वजानिक, उचित निर्देश नहीं रखे, तो उन नागरिकों का दोष है, जनसेवक का नहीं.

⊗ यदि बहुमत नागरिकों ने एस.एम.एस, ट्विट्टर, सादे कागज़ पर या एक्सेल शीट पर, इन्टरनेट पर, सार्वजनिक, अपने वोटर नंबर के साथ, नागरिक-प्रामाणिक रूप से उचित निर्देश रखे हैं और फिर भी जनसेवक ने उन निर्देशों को लागू नहीं किया और न ही निर्देशों को लागू न करने का कोई कारण बताया, तो जनसेवक की पोल पब्लिक में सबूत के साथ खुल जायेगी.

2. आजकल नागरिकों के द्वारा अपने प्रतिनिधियों के साथ संवाद करने के लिए जो तरीके आमतौर इस्तेमाल किये जाते हैं वो नागरिक-प्रमाणिक (नागरिक द्वारा जांचे जा सकने वाले) नही होते हैं और इसलिए परिणाम परिणाम नहीं दे पाते

इसलिए, यदि आप सांसद, विधायक, पार्षद या अपने क्षेत्र के चुने हुए प्रतिनिधि हैं, तो आपको और अन्य सभी नागरिकों को कैसे पता चलेगा कि क्षेत्र के नागरिक क्या चाहते हैं कि आप क्‍या करें? आपको और अन्य नागरिकों को कैसे पता चलेगा कि नागरिक कौन से कानून और व्यवस्थाएं चाहते हैं? आखिरकार, आपका समय सीमित है.

आइए हम आज कुछ तरीके देखते हैं जो कि आजकल नागरिकों और उनके प्रतिनिधियों के बीच संपर्क के लिए इस्‍तेमाल किये जा रहे हैं.

कई पार्टियां और उम्मीदवार दावा करते हैं कि जीतने के बाद, वे समाज की समस्याओं को सुनने और उनका समाधान करने के लिए कार्य करेंगे. और वे एक शिकायत ईमेल आईडी, शिकायत फोन, एसएमएस नंबर या पता भी देते हैं.

लेकिन सच्चाई यह है कि `आपका सांसद आपकी बात को सुन नहीं सकता है, आपका सांसद केवल आपकी गिनती कर सकता है.`

हां, आप इसे सही पढ़ते हैं - `आपका सांसद आपकी बात को सुन नहीं सकता है, आपका सांसद केवल आपकी गिनती कर सकता है`. यहां सांसद का मतलब है आपके सांसद, विधायक, पार्षद सरकारी कर्मचारी आदि. आइए देखें कि यह कथन कितना सच है.

मान लीजिये कि हर एक मतदाता चाहता है सांसद उसे 5 मिनट के लिए सुने, अब सांसद के पास 17 लाख मतदाता है और अगर 25% भी 5 मिनट के लिए बोलेंगे तो ये 17लाख*25/100*5 मिनट्स = लगभग 21 लाख मिनट्स होते हैं और अगर सांसद दिन के 10 घंटे भी सुनना शुरू करता है तो उसे 8 से 9 साल लग जायेंगे !!! दूसरे शब्दों में, एक सांसद के लिए हर एक को सुनना या हर एक पत्र पढ़ना या एस.एम.एस. पढ़ना भौतिक रूप से असंभव है और ये प्रधानमंत्री के लिए भी असंभव है ! एक कॉर्पोरटर (पार्षद) जिसके पास एक लाख मतदाता है वो भी सभी मतदाताओं जो उसके अंतर्गत आते है, को नहीं सुन सकता.

उच्च वर्ग के लोग अपने संपर्क द्वारा अपनी कोई बात जनता के सामने रखना चाहे तो वे ऐसा मिडिया के माध्यम से आसानी से कर सकते हैं, किन्तु यदि जनता अपनी कोई मांग या सुझाव शासन के सम्मुख रखना चाहे तो उन्हें अनशन, धरने, विरोध प्रदर्शन, हस्ताक्षर अभियान, ज्ञापन, रास्ता जाम, नारेबाजी आदि असंगठित तरीकों को अपनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है. किन्तु इन सब तरीकों से कोई 'नागरिक प्रमाणिक' प्रमाण पैदा नहीं होता, मतलब कोई भी नागरिक स्वयं जांच सके, ऐसा प्रमाण नहीं मिल पाता कि कितने नागरिक अमुक विषय के समर्थन या विरोध में हैं. नागरिक-प्रामाणिक नहीं होने से इन प्रक्रियाओं की विश्वसनीयता नहीं होती और नागरिक या अफसर कोई स्पष्ट निष्कर्ष पर नहीं आ पाते. इस प्रकार, ईमानदार अफसर नागरिक-मतदाताओं के अनुसार अपना कार्य नहीं कर पाते और बे-ईमान अफसर आसानी से ये कहकर फिसल जाते हैं कि `समर्थन हस्ताक्षर आदि प्रामाणिक नहीं हैं` या `हम इस मुद्दे को देखेंगे. अभी हम और बहुत जरुरी काम कर रहे हैं.`

pgportal.gov.in जैसी सरकारी साईट में नागरिक के वोटर आई.डी. नंबर के साथ शिकायत दर्शाने का विकल्प भी नहीं है, जिससे दूसरे नागरिक ये पता नहीं लगा सकते कि शिकायत दर्ज करने वाला व्यक्ति असली हैं कि नकली. लेकिन टी.सी.पी. में नागरिक की राय पहचान पत्र संख्या के साथ प्रधानमंत्री वेबसाईट पर आएगी ; कोई भी नागरिक वोटर आई.डी. राय वाले डाटा का सैम्पल लेकर, राय देने वाले व्यक्तियों का पता निकालकर उनसे संपर्क करके स्वयं पता लगा सकता हैं कि डाटा सही है कि नहीं.

सरकारों द्वारा प्रदान की गयी कुछ अन्य शिकायत प्रणालियों में, आप बिना लॉग इन किए अपनी खुद की शिकायत को भी नहीं देख सकते हैं. इस प्रकार, यदि सरकारी अधिकारी कोई उचित कार्रवाई नहीं करते हैं, तो आप अन्य नागरिकों को एक प्रमाणित तरीके से शिकायत और तथ्‍यों को दिखा भी नहीं सकते हैं जो कि आपने दर्ज की हैं.

ईमेल, हस्ताक्षर अभियान, ऑनलाइन याचिका आदि जैसे तरीके, नागरिक-प्रामाणिक नहीं हैं और उनका इस्‍तेमाल करके, नागरिक अपनी आवाज को प्रतिनिधियों तक ठीक से पहुंचा नहीं पाते.

यदि ईमेल पहुँचता नहीं है, तो हम उसका कारण नहीं जान सकते हैं और हम यह भी नहीं जान सकते हैं कि जिस व्यक्ति को हमने ईमेल भेजा है उसने ईमेल पढ़ लिया है या नहीं.

कृपया ध्यान दें कि सांसद को ईमेल द्वारा भेजे गए निर्देश बेकार होते हैं क्योंकि ईमेल आई.डी को मतदाता संख्या से जोड़ा नहीं जा सकता, फर्जी ईमेल आई.डी बनायी जा सकती है, नकली ईमेल को असली जैसे दिखने वाली ईमेल बनाई जा सकती है आदि.

3. विकेन्द्रीयकृत, समूह में जोड़े जा सकने वाले नागरिक-प्रामाणिक सिस्टम समाधान हैं

तो, समाधान क्या है ?

समाधान यह है कि जब तक राइट टू रिकाल, टी.सी.पी मीडिया पोर्टल आदि कानून नहीं आते हैं, कार्यकर्ताओं, चुनाव उम्मीदवारों और मतदाताओं को अपने जिले या क्षेत्र के मतदाताओं के लिए विकेंद्रीकृत, समूह में जोड़े जा सकने वाले नागरिक-प्रामाणिक सिस्टम निम्न में से एक या अधिक कदम उठाने चाहिए -

स्टेप 1) गैर-`पब्लिक राय सर्वर`, विकेन्द्रीयकृत, नागरिक-प्रामाणिक तरीके

मतदाता अपने एक विश्‍वसनीय व्‍यक्ति को अपनी मतदाता संख्‍या और अपनी मांग वाला एसएमएस दे सकते हैं या अपने विश्‍वसनीय व्‍यक्ति को एक कागज पर अपनी मतदाता संख्‍या और अपनी मांग दे सकते हैं और उस व्यक्ति से कह सकते हैं कि वह इसे एक एक्सेल शीट पर इंटरनेट पर शेयर (सांझा) करें. यदि वह व्यक्ति मांग और मतदाता संख्या को एक्सेल शीट में नहीं डाल सकता है, तो कम से कम उसे डेटा वाले कागज की फोटो को इंटरनेट पर डालना चाहिए ताकि कोई अन्य नागरिक उस डेटो को एक्सेल शीट डाल सके. इस प्रकार, किसी व्‍यक्ति के द्वारा इस सार्वजनिक सूचना को एक्सेल शीट के रूप में इकठ्ठा किया जा सकता है और आसानी से आपस में जोड़ा जा सकता है.

विकेंद्रीकृत, समूहीकृत (समूह में जोड़े जा सकने वाले), नागरिक-प्रामाणिक, राय को प्रदर्शित करने वाला सिस्टम, आंदोलन को मरने से रोका जा सकता है, भले ही कार्यकर्ता बिक जाता है या काम करना बंद कर देता है

यह एक विकेन्द्रीयकृत सिस्टम है. क्योंकि बहुत सारे कार्यकर्ता स्वतंत्र रूप से इस तरह का वोटर नंबर समर्थन इकठ्ठा करके एक्सेल शीट पर डालकर इंटनेट पर अपलोड करके शेयर कर सकते हैं. मान लीजिए, 10 कार्यकर्ताओं ने एक मुद्दे पर औसत 10 हजार वोटर नंबर समर्थक इन्टरनेट पर शेयर किये हैं और उनमें मान लीजिए 10,000 डुप्लिकेट हैं. अब, अन्य कार्यकर्ता इन एक्सेल शीट को इकट्ठा कर सकते हैं, डुप्लिकेट को हटा सकते हैं और 90,000 वोटर नंबर समर्थकों का संग्रह (मर्ज) कर सकते हैं. तो उनके डुप्लिकेट हटा कर उन 90,000 वोटर नंबर समर्थकों का संग्रह कर सकता हैं और उसे इन्टरनेट पर शेयर कर सकता हैं. इसलिए, यह विधि समूहीकृत भी है. भले ही उम्मीदवार और कार्यकर्ता बिक जाते हैं या अच्छे, जनहित के ड्राफ्ट को बढ़ावा देने के लिए काम करना बंद कर देते हैं, तो भी आंकड़े और आंदोलन नहीं मरेंगे यदि ड्राफ्ट और आंकड़े सार्वजनिक होते हैं. अन्य कार्यकर्ता 90,001 से आगे मतदाता संख्या समर्थन एकत्र करना शुरू कर सकते हैं और 0 से नहीं. और लक्ष्य प्राप्‍त होने तक मतदाता समर्थन संख्या बढ़ती जाएगी. पर्याप्त संख्या में मतदाता संख्या समर्थन प्राप्त करने के बाद, मांग या आम-ड्राफ्ट को लागू किया जायेगा.

"विकेन्द्रीयकृत" का मतलब है जिस पर दूसरों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है. इन साइटों का डेटा सार्वजनिक होता है, जिसे कोई भी डाउनलोड कर सकता है और इसे साझा कर सकता है और इसे फैला सकता है. कोई भी व्‍यक्ति उस डेटा को दबा नहीं सकता है.

यह एक पोस्‍ट डालने के जैसा होता है, जिसमें पोस्‍ट डालने वाला अपनी पोस्‍ट को हटा सकता है, लेकिन कोई भी व्‍यक्ति पोस्‍ट को डाउनलोड या कॉपी पेस्‍ट कर सकता है. इसलिये, यदि चीजें एक बार सार्वजनिक डोमेन में आ जाती हैं तो उन्‍हें आसानी से दबाना संभव नहीं होता है. और चूंकि इस डेटा में पता, मतदाता संख्‍या, जैसी संपर्क जानकारी होती है, अन्‍य नागरिक उस मतदाता संख्‍या के सैंपल से संपर्क कर सकते हैं और उस डेटा को क्रॉस-वेरीफाई कर सकते हैं और निर्णय कर सकते हैं कि डेटा सही है या गलत है.

स्टेप 2) मतदाता / कार्यकर्ताओं के द्वारा उनके क्षेत्र के मतदाताओं के लिए 'वोटर नंबर पब्लिक ट्विटर / एस.एम.एस राय सर्वर' शुरू किया जा सकता है

कार्यकर्ता / मतदाता अपने क्षेत्र के लिए 'वोटर नंबर पब्लिक ट्विटर / एस.एम.एस राय सर्वर' शुरू कर सकते हैं जैसे count.recallbytweet.com और इसी तरह की वेबसाइट.

कार्यकर्ता इस सिस्टम को केवल रु. 1000 खर्च करके शुरू कर सकते हैं और इस सिस्टम को कम समय में बनाया जा सकता है. बाद में लगभग 250 रूपया महीना चाहिए और चलाने के लिए कोई विशेष तकनीकी जानकारी नहीं चाहिए – थोड़े से प्रयास से एक कार्यकर्ता या उम्मीदवार इसे आसानी से सीख सकता है और शुरू में हफ्ते में 2 घंटे सिस्टम को चलाने के लिए देना पर्याप्त रहेगा.

जिन मतदाताओं के पास इंटरनेट है, उन्हें एक ट्विटर अकाउंट खोलना चाहिए और यदि संभव हो तो अपनी ट्विटर प्रोफाइल में अपनी मतदाता संख्या या पता डालना चाहिए. और मतदाताओं को @pmoindia या उनके राय के मुख्यमंत्री को मांग की हैश-टैग और मांग की लिंक के साथ ट्वीट करना चाहिए. ये एक "विकेन्द्रीयकृत" तरीका है जिसमें किसी का कोई भी "कंट्रोल" नहीं होता है.

स्टेप 3) जनसेवक या चुनावी उम्मीदवार भी अपने क्षेत्र के मतदाताओं के लिए `वोटर नंबर पब्लिक ट्विट्टर / एस.एम.एस राय सर्वर` शुरू कर सकते हैं

जब तक टी.सी.पी., राईट टू रिकॉल आदि प्रस्तावित राजपत्र छपवा नहीं दिए जाते, मतदाताओं को अपने जनसेवको को ट्वीट आदि द्वारा अपने क्षेत्र के मतदाताओं के लिए एक `वोटर नंबर पब्लिक राय सर्वर` बनाने के लिए कहना चाहिए जिसमें मतदाता अपने मोबाइल / वोटर नंबर द्वारा रजिस्टर हो सकते हैं और एस.एम.एस, ट्वीट द्वारा भेजी गयी अपनी राय को अपने वोटर नम्बर के साथ दिखा सकते हैं.

इसके अलावा, कोई भी चुनावी उम्मीदवार, रुपये 250 प्रति माह खर्च करके और प्रति सप्ताह 2 घंटे देकर ऐसा एक 'वोटर नंबर पब्लिक एस.एम.एस सर्वर' बना सकता है. यदि चुनावी उम्मीदवार इतना भी नहीं कर सकता तो, तो फिर उसे अपने घोषणा पत्र में अपना लिखना चाहिए कि वो समय और धन के अभाव में ऐसा पब्लिक एस.एम.एस सर्वर नहीं बना सकता. ऐसे चुनावी उम्मीदवार को अपने घोषणा पत्र में अपना पब्लिक मोबाईल देना चाहिए, जिसपर नागरिक किसी जनहित कानून या मांग के लिए वोटर नंबर के साथ अपनी राय एस.एम.एस द्वारा भेज सकें और उम्मीवार को किसी मुद्दे के लिए वोटर नंबर राय को इंटनेट पर, एक्सेल शीट पर शेयर करना चाहिए.

`वोटर नंबर पब्लिक एस.एम.एस सर्वर` का एक फायदा यह है कि कोई भी व्यक्ति फिर से एस.एम.एस भेजकर अपनी राय को बदल सकता है या डेटा को सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित होने से छिपा सकता है. यही कारण है कि इस प्रक्रिया को पैसे, गैंगस्टर पावर या मीडिया पावर के द्वारा दबाया नहीं जा सकता है.

4. जब तक टी.सी.पी, राईट टू रिकॉल आदि जनहित के कानून लागू नहीं हो जाते, विकेन्द्रीयकृत, नागरिक-प्रामाणिक सिस्टम भ्रष्टाचार और अपराध को कम कर सकते हैं

जब किसी मुद्दे या व्‍यक्ति के लिए मतदाता संख्‍या समर्थन या विरोध एक एक्‍सेल शीट में इंटरनेट पर सार्वजनिक रूप से दर्शाया जाता है जिसे कोई भी व्‍यक्ति डाउनलोड कर सकता है, तो दी गयी जानकारी जैसे किसी बयान, सबूत या शिकायत आदि की कॉपी, क्‍योंकि गैंगस्‍टर आदि के लिए यह जानना संभव नहीं हो सकता है कि जानकारी को किसने डाउनलोड किया है और किसने इसे पैम्‍फलेट्स के रूप में बांटें हैं. सबूत नहीं दबने के कारण, उस क्षेत्र में अपराध और भ्रष्टाचार कम हो जायेगा. इन नागरिक-प्रामाणिक तरीकों का प्रयोग करके नागरिक अपने निकम्मे जनसेवकों को जन-दबाव द्वारा बदल सकते हैं. नौकरी जाने के डर से जनसेवक अपने काम में सुधार करते हैं.

5. सच्चाई ये है कि इसकी कोई गारंटी नहीं है कि कोई भी व्यक्ति – यहाँ तक जो चुनाव द्वारा जनहित के कानून का बढ़ावा कर रहे हैं, वे अपने चुनाव जीतने के बाद अपने वायदों पर पलट नहीं जायेंगे

2012 के दिल्ली के स्थानीय चुनावों में, जब मतदाताओं को कहा गया कि राईट टू रिकॉल कानून का बढ़ावा कर रही उम्मीदवार को वोट करें, तो मतदाताओं ने बोला "जब बड़े बड़े लोग पलट गए तो क्या गारंटी है कि तुम भी पलट नहीं जाओगे ? तुम ये कह रहे हो कि हमें राईट टू रिकॉल की इसीलिए जरुरत है ताकि लोग अपना व्यवहार सुधार दें और चुनाव जीतने के बाद अपने वायदों पर पलते नहीं. तो यदि राईट टू रिकॉल नहीं होगा और जनसेवक को हटाये जाने का दर नहीं होगा, तो फिर तुम भी चुनाव जीतने के बाद राईट टू रिकॉल कानून का प्रचार करना बंद कर सकते हो. तो फिर, हम तुम्हारे लिए वोट क्यों करें ?"

तो सच्चाई ये है कि इसकी कोई भी गारंटी नहीं है कि चुनाव के बाद कोई व्यक्ति चाहे कोई भी व्यक्ति हो, आज के युग में कोई भी – हाँ कोई भी चुनाव के बाद पलट सकता है. कोई भी व्‍यक्ति, चुनाव जीतने के बाद, अपने व्‍यवहार को बदल सकता है और अपने काम और वादों से पीछे हट सकता है. बहुत सम्भावना ये है कि चुनाव के बाद कोई व्यक्ति या तो पलट जाये या तो उसे दबा दिया जाये या मार दिया जाये. केवल अच्छे कानून का बढ़ावा करने के लिए चुनाव लड़ना कोई गारंटी नहीं हिया कि व्यक्ति चुनाव जीतने के बाद पलट नहीं जायेगा. यदि ऐसा होता, तो फिर राईट टू रिकॉल कानून की क्या आवश्यकता होती ? फिर तो, मतदाता ऐसे व्यक्ति को चुनते जो केवल अच्छे कानून-ड्राफ्ट का बढ़ावा करते.

यदि कोई भी ऐसा सिस्टम लागू नहीं है जिसके द्वारा नागरिक अपने जनप्रतिनिधि को जनदबाव द्वारा बदल सकते हैं और फिर भी चुनाव लड़ा जाता है, ये न केवल समय की बर्बादी है बल्कि समाज के लिए बहुत हानिकारक भी है.

चुनाव के बाद, अधिकतर उम्मीदवार अपने वायदों और कार्य से पलट जाते हैं या दबा दिए जाते हैं. तो समर्थकों द्वारा दिया गया समय और पैसे और मेहनत पर पानी फिर जाता है और फिर दूसरे कार्यकर्ताओं और नागरिकों को जीरो या माइनस से शूरू करना होता है. इस प्रकार, आज के चुनाव पर कुछ ही लोगों का कंट्रोल होता है और कुछ ही लोग उभरते हैं, समर्थकों का नाम और संपर्क तो कहीं दिखता ही नहीं. इसलिए, चुनाव और चुनाव द्वारा किसी मुद्दे का प्रचार केन्द्रीय तरीका है – मतलब कुछ ही लोगों द्वारा वो कंट्रोल किया जा सकता है. - मतलब उससे परिणाम ये होंगा कि केवल कुछ ही लोग सारी चीजों को कंट्रोल करेंगे.

6. नागरिक-प्रामाणिक सिस्टम के अभाव में, अपनी राय एस.एम.एस या ट्वीट द्वारा भेजना और उनकी गिनती नहीं करने से, केवल अनंत, हवा-में चर्चा और समय बर्बादी होगी और लोगों को जन-आंदोलन और जनहित कानून में रूचि समाप्त हो जायेगी और आंदोलन केंद्रीयकृत हो जाता है

2012 में जो उम्मीदवार राईट टू रिकॉल और अन्य जनहित के कानून-ड्राफ्ट पर लड़ रहे थे, उन्होंने ऐसा कोई तरीका नहीं दिया था, जिसके द्वारा नागरिक जांच कर सकत थे कि कितने नागरिक जनसेवक के काम से खुश हैं या नहीं खुश हैं. क्योंकि कोई भी व्यक्ति, जो पहले ईमानदार था, चुनाव जीतने के बाद असली संख्या को छुपा सकता है.

नागरिक द्वारा स्वयं जांचे जा सकने वाले समर्थन संख्या प्रमाण के अभाव में, एक व्यक्ति जो उस जनसेवक का समर्थक है, ये दावा कर सकता है कि केवल कुछ सौ लोग, जो विरोधी दल से हैं, वे ही ऐसे इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. और दूसरा व्यक्ति, जो उस जनसेवक का विरोधी है, ये दावा करेगा कि हजारों-लाखों जनसेवक के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. और परिणाम ये होगा कि दो पक्ष हो जायेंगे जिनके बीच, हवा में, अंत-हीन बहस चलेगी और लोगों का जन-आन्दोलन और जनहित प्रक्रियाओं पर विश्वास नहीं रहेगा. और लोगों की जन-आंदोलन और जनहित के कानूनों में रूचि नहीं रहेगी.

यदि वोटर नंबर समर्थन को इकठ्ठा करने के लिए कोई तरीका नहीं है, तो अधिकतर कार्यकर्ता कुछ एक-आध व्यक्ति के भक्त हो जाते हैं, क्योंकि उनको दर है कि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो समूह की शक्ति कम हो जायेगी. इस प्रकार, आंदोलन केंद्रीयकृत हो जाता है.

इसके अलावा, ये नागरिक-प्रामाणिक सिस्टम बुरे जनप्रतिनिधियों को जनदबाव द्वारा हटाये जाने के डर के कारण अपना काम और व्यवहार सुधारने के लिए मजबूर करते हैं. इस प्रकार, जब तक `राईट टू रिकॉल` आदि कानून नहीं आ जाते, नागरिक-प्रामाणिक सिस्टम एक प्रकार का `राईट टू रिकॉल` सिस्टम के रूप में काम कर सकता है.

7. तो, अब कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को निर्णय लेना है – कि क्या वे जनता में प्रतिनिधियों के लिए नागरिक-प्रामाणिकय निर्देशों को प्रदर्शित करके अपना कर्तव्य निभाना चाहते हैं, ताकि जन-प्रतिनिधि ठीक ढंग से काम करें

यदि इसके लिए उनका जवाब हॉ है कि कार्यकर्ताओं / मतदाताओं को जनसेवक के लिए नागरिक-प्रामाणिक निर्देशों को सार्वजानिक दिखाकर अपना कर्तव्य करना चाहिए ताकि जन-प्रतिनिधि ठीक ढंग से काम करें, तो फिर कार्यकर्ताओं, चुनावी उम्मीदवारों और मतदाताओं से निवेदन किया जाता है कि वे अपने जिले या छोटे क्षेत्रों के लोगों के लिए एक या एक से अधिक कदम उठाएं जिनका उल्लेख पहले किया गया है.

आगे पढ़ने के लिए - `वोटर नंबर पब्लिक राय सर्वर` - विकेन्द्रीयकृत नागरिक-प्रामाणिक सिस्टम अपराध और भ्रष्टाचार कम कर सकते हैं